कहाँ है इंसानियत?
इंसानियत कहाँ है ? क्या है इंसानियत ? अक्सर जब मैं सोचती हूँ तो मन में केवल यही विचार आता है कि कौन सी इंसानियत ? क्या ये वही इंसानियत है जो आये दिन हम प्राय सुन ने को या देखने को मिल रहा है ? क्या ये वही इंसानियत है जहां एक बारह साल की बच्ची के साथ बहुत ही शर्मनाक घटना हुई। उसे अर्ध नग्न अवस्था में उज्जैन की गलियों में दर दर की ठोकरें खाने और मरने के लिये छोड़ दिया गया ? वह बच्ची मदद माँगती रही पर कही मदद ना मिली । क्या क़सूर था उस बच्ची का जो उसे यह सब कुछ सहना पड़ा ? क्या उसे अपना बचपन जीने का अधिकार नहीं था? क्या उसे और बच्चों की तरह बेफिक्र ज़िंदगी जीने का हक्क नहीं था? उसकी दुनिया उजड़ गई । उसे तो यह भी नहीं मालूम कि उसके साथ हुआ क्या ? क्या हम उसके दर्द का अंदाज़ा लगा सकते हैं? तो बिलकुल नहीं । वो कहते है ना कि जिसको चोट लगती है दर्द केवल उसे होता है किसी और को नहीं। हम तो उसके दर्द को महसूस भी नहीं कर सकते। क्यों इस समाज के उन दरिंदों ने उसे जीते जी मार दिया। क्या यही है इंसानियत? यही थी इंसानियत? क्या आज का मनुष्य इतना मानसिक बीमार और दरिंदा बन चुका है कि वह किसी और की ज़िंदगी बर्बाद कर दे ? उसे इतनी पीड़ा दे कि कि इंसानियत भी उसे धिक्कारे। उसका ज़मीर मर गया? क्या यही है आज का इंसान? इस दुनिया में और इस देश में नजाने कितनी ऐसी और घटनाएँ होगी जिनके बारे में हमे पता तक नहीं। हम समाचार तो देखते है और ऐसी खबरें सुनके हमारा खून तो खोलता है पर हम क्या कर पाते हैं? बस कुछ दिन सुनके उसके बारे में बात करते है और अपने अपने विचार एक दूसरे के समक्ष रखते है। और कुछ ही दिनों में फिर भूल भी जाते हैं। जी यही है आज की इस दुनिया की सच्चाई। क्या अपने कभी सोचा उस लड़की का क्या हुआ होगा? क्या उसे न्याय मिला होगा? उसके परिवार का क्या हुआ होगा ? समाज के ठेकेदारों ने क्या उन्हें जीने दिया होगा ? जी नहीं हम ये नहीं सोचते और यूहीं ये घटनाएँ दब जाती है। तो मेरी केवल यही प्रार्थना है की कृपया सोचे और अपनी आवाज़ उठाये। आज एक उठेगी तो कल हज़ार उठेगीं। वरना ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहेगा और इंसानियत का इस धरती पर कोई वजूद नहीं रहेगा । हम ख़ुद को इंसान नहीं कहला पायेंगे। तो सोचिए और अपनी आवाज़ उठाइये।यह घटनाएँ आज किसी और के साथ हुई है कल को आप के साथ या आपके अपनों के साथ भी हो सकती हैं। तो जागरूक नागरिक और इंसान बनिये। सामाजिक बुराइयों को अनदेखा ना करें।
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